Mirza Ghalib Shayari in Hindi

Best Ghalib Shayari Hindi उर्दू और हिंदी साहित्य का एक ऐसा अमूल्य खजाना है, जो आज भी लाखों दिलों की धड़कन बना हुआ है। मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी उनकी जिंदगी के अनुभवों और गहरी सोच का बेहतरीन उदाहरण है। जब भी शायरी का जिक्र होता है, तो Mirza Ghalib Shayari का नाम सबसे ऊपर आता है। उनकी शायरी में मोहब्बत, दर्द, अकेलापन और जिंदगी के गहरे फलसफे नजर आते हैं।

अगर आप ग़ालिब के शब्दों की ताकत को महसूस करना चाहते हैं, तो Ghalib Ki Shayari आपके लिए एक शानदार शुरुआत हो सकती है। उनके अल्फाज इतने दिल से निकले हुए होते हैं कि हर इंसान खुद को उसमें कहीं न कहीं पा लेता है। वहीं Ghalib Shayari in Urdu पढ़ना एक अलग ही अनुभव देता है, क्योंकि उर्दू की मिठास में ग़ालिब की बातों का असर और गहरा हो जाता है।

आज के समय में बहुत से लोग Heart Touching Mirza Ghalib Shayari in Hindi भी पसंद करते हैं, ताकि वे ग़ालिब की भावनाओं को हिंदी में भी महसूस कर सकें। जो लोग उर्दू लिपि नहीं पढ़ सकते, उनके लिए Mirza Ghalib Ki Shayari हिंदी में एक खूबसूरत विकल्प बन गई है। चाहे इश्क हो या ग़म, ग़ालिब की शायरी हर दिल का हाल बयां करने में सक्षम है।

Ghalib Shayari in Hindi उन पाठकों के लिए है जो हिंदी में ग़ालिब की सोच और जज्बात को अपनाना चाहते हैं। ग़ालिब की रचनाएं ऐसी हैं कि उन्हें पढ़ते समय हर कोई उनके एहसासों से जुड़ जाता है। मोहब्बत पर लिखी उनकी गहराइयों को समझने के लिए Ghalib Shayari on Love एक बेहतरीन जरिया है।

अगर आप उर्दू में इश्क का सच्चा रंग देखना चाहते हैं, तो Ghalib Shayari on Love in Urdu पढ़ना बेहद खास अनुभव होगा। वहीं जो लोग ग़ालिब की शायरी को हिंदी में पढ़ना पसंद करते हैं, उनके लिए Mirza Ghalib Shayari in Hindi दिल को छू लेने वाली होती है। मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी आज भी हर दिल के करीब है और हर जज्बात को खूबसूरती से बयान करती है।

Ghalib Shayari

ghalib shayari_

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
डरता हूँ दिल की बात कहने से ‘ग़ालिब’,
कहीं वो सुनकर खफ़ा ना हो जाए।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों,
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ,
रंग लाएगी हमारी फ़ाक़ामस्ती एक दिन।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि ‘तू क्या है’,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।
दिल को बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है,
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त क्या है।
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पे कहना कि यूँ होता तो क्या होता।

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Mirza Ghalib Shayari

mirza ghalib shayari_

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों,
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों।
कभी खुद पे, कभी हालात पे रोना आया,
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया।
तेरे वादे पे जिए हम तो ये जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता।
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीमकश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पे कहना कि यूँ होता तो क्या होता।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल को खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ,
रंग लाएगी हमारी फ़ाक़ामस्ती एक दिन।

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Ghalib ki Shayari

ghalib ki shayari_

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि ‘तू क्या है’,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।
इश्क़ मुझको नहीं वहशत ही सही,
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही।
कटा करूँ तेरा रास्ता देखकर,
कहीं तो होगा तेरा इंतज़ार करता हुआ।
तज़ुर्बा कर के बता देंगे तुझे ऐ ‘ग़ालिब’,
इश्क़ क्या चीज़ है और कितना दर्द देता है।
नक़्श फ़िराक़ में रंग-ए-वफ़ा ढूँढते हैं हम,
जिन्हें इल्म नहीं दर्द का वो क्या समझेंगे।
दिल में कोई रहता है तो आईना क्यूँ देखूं,
इश्क़ करता हूँ तुझसे तो ज़माना क्या देखूं।
तेरी हर बात मोहब्बत में गँवारा कर के,
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के।
बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना।
दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जाना किए हुए।

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Ghalib Shayari in Urdu

ghalib shayari in urdu_

Hazaron khwahishen aisi ke har khwahish pe dam nikle,
Bahut nikle mere armaan lekin phir bhi kam nikle.
Ishq par zor nahi hai yeh woh aatish Ghalib,
Ke lagaye na lage aur bujhaye na bane.
Dil-e-naadaan tujhe hua kya hai,
Aakhir is dard ki dawa kya hai.
Ham hain mushtaaq aur woh bezaar,
Ya ilahi yeh maajra kya hai.
Na tha kuch to khuda tha, kuch na hota to khuda hota,
Duboya mujhko hone ne, na hota main to kya hota.
Mohabbat mein nahi hai farq jeene aur marne ka,
Ussi ko dekh kar jeete hain jis kaafir pe dam nikle.
Unke dekhe se jo aa jaati hai munh par raunak,
Woh samajhte hain ke beemar ka haal acha hai.
Gham-e-hasti ka ‘Ghalib’ kis se ho juz marham,
Har zarra nafs-e-hayat ka karzdaar nikla.
Har ek baat pe kehte ho tum ke tu kya hai,
Tumhi kaho ke yeh andaaz-e-guftagu kya hai.
Khuda kare ke mohabbat mein yeh maqam aaye,
Kisi ka zikr ho aur tumhara naam aaye.

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Heart Touching Mirza Ghalib Shayari in Hindi

heart touching mirza ghalib shayari in hindi_

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।
तेरा न मिलना भी एक तरह का मिलना है,
ये बात ‘ग़ालिब’ तुझे बहुत देर में समझ आई।
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
दर्द का रिश्ता बहुत पुराना है,
हर आह में तेरा नाम निकलता है।
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ जाने के लिए आ।
मौत का एक दिन मुअय्यन है,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।
तेरे बिना ज़िंदगी में कुछ भी कमी नहीं,
बस तू जो नहीं तो कोई खुशी नहीं।
ग़ालिब को पढ़ते हैं लोग मोहब्बत समझने,
हमने तो हर शेर में तेरा नाम देखा।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल को खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।
कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नज़र नहीं आती।

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Mirza Ghalib ki Shayari

mirza ghalib ki shayari_

बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार,
या इलाही ये माजरा क्या है।
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
तेरे वादे पे जिए हम तो ये जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता।
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।
ग़म-ए-हस्ती का ‘ग़ालिब’ किस से हो जुज़ मरहम,
हर ज़र्रा नफ्स-ए-हयात का क़र्ज़दार निकला।
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।

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Ghalib Shayari in Hindi

ghalib shayari in hindi_

तेरे वादे पे जिए हम तो ये जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों,
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों।
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल को खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीमकश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
कभी दिल कभी नज़र में रहा तू,
कभी मेरी हर एक खबर में रहा तू।
जुबाँ से कह न सके पर हक़ीक़त में,
हर एक शेर के अंदर रहा तू।

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Ghalib Shayari on Love

ghalib shayari on love_

इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
तेरे वादे पे जिए हम तो ये जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता।
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
वो आये घर में हमारे खुदा की कुदरत है,
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं।
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अद़ा में रज़ामंद कर गई।
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ,
रंग लाएगी हमारी फ़ाक़ामस्ती एक दिन।
तेरी ज़ुल्फ़ों की छाँव में हमने उम्र गुज़ार दी,
मोहब्बत में ही खुद को तबाह कर दी।
दिल की दुनिया उजड़ती रही हर रोज़,
फिर भी तुझसे वफ़ा की कसम खा ली।

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Ghalib Shayari on Love in Urdu

ghalib shayari on love in urdu_

عشق پہ زور نہیں، یہ وہ آتش غالبؔ،
جو لگائے نہ لگے اور بجھائے نہ بنے،
دل کو چُرا کے لے گیا ایک لمحے میں،
بس نام ہی کافی تھا اُس کے جانے کا۔
دل ڈھونڈتا ہے پھر وہی فرصت کے رات دن،
وہ محبت جو فقط باتوں میں ہوا کرتی تھی،
اُس کی مسکراہٹ کا اثر آج تک باقی ہے،
غالبؔ کی طرح ہم بھی برباد ہو گئے۔
ہر ایک بات پہ کہتے ہو تم کہ تُو کیا ہے؟
تمہی کہو کہ یہ اندازِ گفتگو کیا ہے؟
عشق میں غالبؔ کی شاعری بن گئے ہم،
جو سمجھے وہ روئے، جو نہ سمجھے وہ ہنس دیا۔
نہ تھا کچھ تو خدا تھا، کچھ نہ ہوتا تو خدا ہوتا،
ڈبویا مجھ کو ہونے نے، نہ ہوتا میں تو کیا ہوتا؟
عشق میں ڈوبا ہوا ہر لفظ ہے غالبؔ کا،
جو دل سے لکھا گیا اور آنسوؤں سے بھیگا۔
بازیچۂ اطفال ہے دنیا میرے آگے،
ہوتا ہے شب و روز تماشا میرے آگے،
عشق کا درد چھپا کے رکھا تھا دل میں،
غالبؔ کے کلام سے وہ درد بول اٹھا۔

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Mirza Ghalib Shayari in Hindi

ghalib shayari in hindi_

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
इश्क पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है।
हम हैं मुश्ताक और वो बेज़ार,
या इलाही ये माजरा क्या है।
न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
ग़म-ए-हस्ती का ‘ग़ालिब’ किस से हो जुज़ मरहम,
हर ज़र्रा नफ़्स-ए-हयात का क़र्ज़दार निकला।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम ही कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।
ख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मुक़ाम आए,
किसी का ज़िक्र हो और तुम्हारा नाम आए।

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